रविवार, 3 नवंबर 2013

कैसी दीवाली, कैसा उत्सव आधा देश जब भूखा है


क्या हुआ जो मजबूर कर दिया हमे मुंह के छालों ने
मुंह मीठा कर दिया मीठी शुभकामना भेजने वालों ने

क्या हुआ जो खरीद न सका मैं दीवाली के दिये
घर मेरा रोशन कर दिया पडोसी दियों के उजालों ने

क्या हुआ जो रंग रोगन न कर पाया मै दीवारों मे
धूल सारी हटा दी घर की बरस के बादल कालों न

झूम रहे थे खुशियों मे सब फोड़ फ़टाखे अपने घर
सरहद पर झेली आतिशबाजी देश के वीर लालों ने

बाजारों मे बहता पैसा जब इतनी मंहगाई के बाद
हक कितनों के लील गये भ्रष्टाचार और घोटालों ने

कोई तरसा बताशों को कोई छांट मिठाई खाता है
उपहारों से घर भर दिया अफसरों का दलालों ने

कैसी दीवाली, कैसा उत्सव आधा देश जब भूखा है
मुझको सोने न दिये रात भर मन के इन सवालों ने
सुरेश राय 'सरल'
04-11-2013

(चित्र गूगल से साभार )

शनिवार, 2 नवंबर 2013

दोहे :- दीपावली पर


दीपों से जगमग हुआ, सारा ये संसार
धरा से तम मिटाने का , आया ये त्यौहार

पधारो घर माँ लक्ष्मी, संग पधारो गणेश
पूरी हो कामनाऐं , मिटे सारे कलेश

महालक्ष्मी आन बसो ,निर्धन के घर आज
धन वैभव के बिना अब , होत न पूरे काज

फूलझडियाँ खुशियों की , उमंग के फोडें बम
हर मन मे हो रोशनी , मिटे जीवन से तम

होंगे तब रोशन यहाँ , रिश्तो से अंधकार
अना जलाऐं दीप मे , बांटे सब मे प्यार
सुरेश राय 'सरल'