पुरवाई है मां का आंचल
हाथ पिता का साया सा
लेकर रुप मात पिता का
ईश्वर धरती पे आया सा
देखी जब भी सूरत इनकी
अक्स खुदा का पाया सा
ये तो नेमत है कुदरत की
इनमे ब्रम्हांड समाया सा
अनमोल वक्त है जीवन का
संग जो इनके बिताया सा
धिक्कारे जो बुजुर्गों को
जन्म ऐसे सुत का जाया सा
मिले नही पुण्य उसे कभी
दिल इनका गर दुखाया सा
सच्ची दौलत है दुनिया की
न मानो इनको पराया सा
है धन्य उसी का जन्म सरल
भावार्थ मेरा जिसे भाया सा
सुरेश राय 'सरल'
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