सोमवार, 19 अगस्त 2013

हास्य व्यंग-"अब के सावन मेे "


आती थी ढेरों मिठाई, बहनों के लिये बडे उपहार
इन पर पडी है मंहगाई की मार, अब के सावन मे

जितने मे पहले मिल जाती थीं दर्जनों राखियां
उतने मे बिक रही राखियां चार , अब के सावन मे

पहले जाती थीं बहनें घर भाई के, बांधने रक्षाबंधन
भेजी हैं पोस्ट से राखी इस बार, अब के सावन मे

लगते थे झूले और मेले, हरयाली तीज पर
क्लब मे मनाया है तीज त्यौहार, अब के सावन मे

थी कभी "दौ टके" की नौकरी, सावन "लाखों "का ,प्यार मे,
हो गया है नौकरी से सस्ता प्यार, अब के सावन मे

हर तरफ हुआ करती थी, हफ्तों सावन की झड़ी
है कहीं सूखा, कहीं पर बाढ़, अब के सावन मे

नागपंचमी मनाते थे सभी, पिलाकर दूध नाग को
दूध लिये दिखी, नेताओ के घर लंबी कतार, अब के सावन मे

कहे सुरेश, मनचले मजनुओं से,
कि घर से बाहर निकलें न वो,
आ गया है राखी का त्यौहार ,अब के सावन मे
सुरS

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