कभी खुशी कभी मातम ,है प्रमाण आस का
अहसास न देखता पद, आम और खास का
कभी एक बूंद काफ़ी, कभी समंदर भी कम
कोई पैमाना नही है ,मनुष्य की प्यास का
मिलता नही जिगरे सिंह,औढ़ लो चाहे खाल
भूलना औकात अपनी,कारण बने उपहास का
खुद को गर न खोज सके,तुम अपनी उम्र भर
फायदा क्या है भला,बता तेरी ऐसी तलाश का
स्वप्न गढ़े पीढीयों के ,कल का न भरोसा कुछ
जाने कब टूट जाये, बंधन तन से सांस का
जिसने सहा वही रहा , मूल यही है संसार का
ज्येष्ठ की तपिश मे खिले,फूल ज्यों पलाश का
रिश्तो को रखना हरा, सींच के प्रेम नीर से
ॠतु की अना से पड़ता, पीला रंग घास का
कानों मे रस घोलने , मिटा देता खुद को
छेद पाकर सीने मे , इक तुकड़ा बांस का
न खीँच डोर संबंधों की, अपने अभिमान से
टूटे न धागा सुरेश, प्रेम और विश्वास का
सुरेश राय 'सरल'
(चित्र गूगल से साभार )
वाह्ह अति सुन्दर ..एवं सार्थक दोहे ..बधाई
जवाब देंहटाएंकभी एक बूंद काफ़ी, कभी समंदर भी कम
कोई पैमाना नही ,मनुष्य की प्यास का
हार्दिक धन्यवाद सुनीता जी.
हटाएंसादर
सुरेश राय
यह संकलन, दोहों का बहुत ही खुबसूरत गुलदस्ता है जिसमे हर रंग के फूल है।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतू हार्दिक आभार.
हटाएंसादर
सुंदर प्रस्तुति ..... अन्यथा न लीजिएगा .... इनको दोहे नहीं कहा जा सकता ।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद .सहमत हूं .जानकारी की कमी के कारण मैं इन्हे दोहा समझ रहा था.
हटाएंखुद को गर न खोज सके ,तुम अपनी उम्र भर
जवाब देंहटाएंफायदा क्या है भला ,बता ऐसी तलाश का ..
सच कहा है ... बात तो तब है जब इंसान खुद को खोजे ...
सुन्दर पंक्तियाँ हैं ...
रचना के भाव को समर्थन देने एवं सराहने के लिए सादर आभार ,नासवा जी
हटाएंसुधी पाठकों , इस रचना के भावों को स्वीकारें ,
जवाब देंहटाएंखुद को गर न खोज सके ,तुम अपनी उम्र भर
जवाब देंहटाएंफायदा क्या है भला ,बता ऐसी तलाश का ..
..............सुन्दर पंक्तियाँ
माननीय संजय जी , सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय बातें कहीं गईं हैं इन पंक्तियों के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंमाननीय विकास जी , आपका हार्दिक अभिनन्दन जो आप मेरे ब्लॉग पर पधारे .
हटाएंbahut sundar pankti likhi hai aapne..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi aap sabhi ka swagat hai.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
उत्साहवर्धन हेतू हार्दिक आभार Nitish Tiwary jee
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