नए कमरे भी बनवाओ जैल सब भर जाने वाले है
न्यायालय ने कहा है दोषी नहीं बच जाने वाले है
मंत्रि ,संत्री, व अफ़सर जैल की हवा खाने वाले हैं
बैंड बाजा भी बजवाओ ये देश की बैंड बजाने वाले है
उनको भी अंदर पहुंचाओ जो इनको बचाने वाले है
सिर्फ चंद रोटियों से क्या होगा ये करोड़ों खाने वाले है
घास आँगन मे लगवाओ ये चारा भी चाहने वाले हैं
संत इनको न बुलाओ ये धर्म को लजाने वाले हैं
बाँकी कैदियों को बचाओ ये प्रवचन सुनाने वाले हैं
सबक उन्हे सिखलाओ जो कानून को नचाने वाले है
घौटालों की रकम वापस मांगो ये सब पचाने वाले है
जनता उनसे पूछ रही जो कानून को बनाने वाले है
मात्र सजा से क्या होगा,क्या ये सुधर जाने वाले हैं ?
सक्त कानून बनवाओ फाँसी तक उनको ले जाओ
जो लाज लूटें ,कोख मे मारें या बहू जलाने वाले हैं
सुरेश राय 'सरल'
(चित्र गूगल से साभार )
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11-10-2013) को " चिट़ठी मेरे नाम की (चर्चा -1395)
जवाब देंहटाएं" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
हार्दिक अभिनंदन
हटाएंसिर्फ चंद रोटियों से क्या होगा ये करोड़ों खाने वाले है
जवाब देंहटाएंघास आँगन मे लगवाओ ये चारा भी चाहने वाले हैं ...
बहुत खूब .... ये कुछ भी नहीं छोड़ने वाले ... जो मिलेगा सब माल अंदर ...
आदरणीय नासवा जी । उत्साहवर्धन हेतु मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ । आशीष बनाए रखें
हटाएंआपका हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसक्त कानून बनवाओ फाँसी तक उनको ले जाओ
जवाब देंहटाएंजो लाज लूटें ,कोख मे मारें या बहू जलाने वाले हैं
सटीक |
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बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय प्रसाद जी
हटाएंबहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
हार्दिक आभार प्रदीप जी आपका
हटाएंधारदार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय संगीता स्वरुप जी .
हटाएंहार्दिक अभिनन्दन एवं साधूवाद
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली धारदार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंस्नेहिल संजय जी , धार को तेज मापने हेतु शुक्रिया
हटाएंआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय जी , आपसे भी हमारा अपनापन सा लग रहा है . जरूर मिलेंगे
हटाएंजनता उनसे पूछ रही जो कानून को बनाने वाले है
जवाब देंहटाएंमात्र सजा से क्या होगा,क्या ये सुधर जाने वाले हैं ?
सक्त कानून बनवाओ फाँसी तक उनको ले जाओ
जो लाज लूटें ,कोख मे मारें या बहू जलाने वाले हैं ...............इन दो छन्दों ने पूरे देश की व्यथा को क्या व्यंग्यात्मक रुप से लपेटा है। बाकी भी अच्छे हैं।
रचना का भाव सराहने हेतु मैं आपका अभिनन्दन करता हूँ
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