रुपया गिर रहा, संसद मे शिष्टाचार की तरह
विदेशों मे काला धन हुआ,आचार की तरह
सरकार अभिनय कर रह, लाचार की तरह
बात दूर तक जानी थी, प्रचार की तरह
मन मे ही दब के रह गई,विचार की तरह
नेताओ का संग,रुपया को इतना भाया
गिरने मे ना हिचका, और न ही शर्माया
उन के उठने, सुधरने की उम्मीद हमें नही
हे खुदा, गिरे रुपया को तो उपर उठा सही
सुरS
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें