पर बेरुखी की धूल से,मुझको न दबा देना
दूर है मंजिल मेरी,रास्ते सूनसान है
रहनुमा हर कदम,तुम साथ सदा देना
लंबा है ये सफ़र,साथी सभी अनज़ान है
गर फिसल जाऊं कहीं,तुम हाथ सदा देना
जख़्म देगा ये जमाना,इसका यही उसूल है
जख़्म ये भरता रहे,हाथों से तुम दवा देना
आप ने जो भी मांगी,हर दुआ कबूल है
हुनर मेरा पलता रहे,दिल से ये दुआ देना
स्नेह की आस के,जलाये हैं चिराग मैनें
अहम की फ़ूंक से तुम,इनको न बुझा देना
मुर्झा जाते है पौधे,गर न सींचोगे उन्हे
रखना रिश्तों को हरा,इनको न सुखा देना
कोशिशें मैं करुंगा,उम्मीद पूरी कर सकूं
मेरी हरएक पहल पर,तुम अपनी रज़ा देना
मेरा वज़ूद तुम से है,तुम ही लिखने की वज़ह
तुम से जुद़ा'सुरेश'हो जाये,ऐसी न सज़ा देना
© सुरेश राय 'सुरS'
सुन्दर भाव से जज़्बात को बिखेरा आपने
जवाब देंहटाएंग़ज़ल में मैट्रन का और साथ में काफ़िया और रदीफ़ का भी ताल मेल होता है।
शुरूआती दौर है, अभी तो बस ऐसे ही मन के जज़्बात को हवा देते रहिये।
अपने आप जितना ज्यादा पढेंगे, उतना अच्छा लिखते जायेंगे।
शुभकामनाएँ
जी सही कहा आपने. मै बस दो महीनों से लिख रहा हूं. तकनीक से अपरिचित, आप लोगों को देख उत्साहित ओर प्रेरित होता हूं. मार्गदर्शन के लिये आभारी हूं
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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सम्मानित 'मदन जी', दर्शन जी हौसलों की हवा देने एवं उत्साहवर्धन हेतु, हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
जवाब देंहटाएंसम्मानित संजय भास्कर जी', उत्साहवर्धन हेतु, हार्दिक आभार
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